शनिवार, 15 फ़रवरी 2020

गुलाबी सर्दी में एक विरह गीत

गुलाबी सर्दी में एक विरह गीत
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दृगजलों 
को चक्षुओं
से  मत  बहाओ-
शीघ्र ही मैं लौट आऊँगा दोबारा।

कार्य
अपना पथ
प्रगति पर, है प्रिये सुन।
प्रेयसी
दो अनुमति
अब, शान  से तुम-
कंठ से क्रंदन  विरह का मत सुनाओ।
शीघ्र ही मैं लौट आऊँगा दोबारा।

एक 
क्षत्रिय जा
रहा रणभूमि जैसे।
अदम्य
साहस शौर्य
भर कर दो तिलक तुम।
केश उलझे तुम दिखा कर मत रिझाओ-
शीघ्र ही मैं लौट आऊँगा दोबारा।

सब
जानकी
जलतीं विरह की अग्नि में हैं।
हर
यामिनी 
पश्चात आतीं रश्मियाँ हैं।
यूँ तीर नयनों के हृदय पर मत चलाओ।
शीघ्र ही मैं लौट आऊँगा दोबारा।

आचार्य प्रताप

गुरुवार, 13 फ़रवरी 2020

छंदों के प्रति नेह

कई मुक्त सृजनकर्ताओं को पढ़ने के बाद एक कुंडलियाँ
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नहीं बरसाता है कहीं , छंदों पर अब नेह।
कविता की ये देह को , कुचल रहें हैं मेह।
कुचल रहें हैं मेह , आज छंदों का जीवन।
छंद  देव  के हेतु  , समर्पित मेरा तन मन।
कविताओं  में  छंद , बहाते सदा सरसता।
छंद बिना अब नेह , कहूँ  मैं नहीं बरसता।

आचार्य प्रताप

आज का दुःख

दो पंक्तियाँ
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क्या कहूँ कैसे कहूँ  मनमीत मेरे
और कितने दुःख हृदय में मैं छुपाऊँ।
सोचता हूँ राज़ सारे खोल कर अब
आज क्रंदन सुर सभी को मैं सुनाऊँ।।

आचार्य प्रताप

सोमवार, 10 फ़रवरी 2020

वाणी वन्दना - दोहे

  1. दोहे
ज्ञानदायनी शारदे , माँ का मंगल रूप।
वर दे वीणा धारिणी , चलूँ ज्ञान अनुरूप।।०१।।

प्रेम मिलन की आस में, लिखता रहा प्रताप
हे माँ ! शारद ज्ञान दें, गुरु शरण दें आप।।०।।

पद्मासन को छोड़कर, बसिए वाणी आप।
सम्यक वर दो ज्ञान का , हर लो सब संताप।।
०३।।

तीन लोक विख्यात है , वाणी पर अधिकार।
शोभित वीणा हाथ में , दे दो सुमति अपार।।
०४।।

हंसवाहिनी ज्ञान देंं , भर दो सुमति अपार।
करूँ जगत हित काम कुछ, वाणी आज सवार।।
०५।।

मातु शारदे को करो , पहले आप प्रणाम।
गीत-ग़ज़ल अरु छंद का ,शुरू कीजिये काम।।०६।।

                                      -आचार्य प्रताप

वाणी- वन्दना - पञ्चचामर छंद


विधा-पञ्चचामर_छंद
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प्रणाम माँ तुम्हें करे प्रताप शान से सदा ।
अपार ज्ञान कोष से हरो समस्त आपदा।
विराजमान हंस में प्रकाश ज्ञान का‌ भरो।
सफेद वस्त्र धारिणी विकार दूर भी करो।

किताब हार हाथ में  सितार साथ में लिए।
उपासना करूँ सदा सरोज पुष्प भी दिए।
करूँ प्रणाम शारदे विशाल हंसवाहिनी।
दिया जला दिया गया विशेष ज्ञानदायिनी।

नमामि मातु शारदे नमामि ज्ञान दायिनी।
सरस्वती दया करो नमामि हंस वाहिनी।
कृपा करो कृपा करो प्रकाश ज्ञान का भरो।
दया करो दया करो समस्त आपदा हरो।

                        -आचार्य प्रताप

शुक्रवार, 7 फ़रवरी 2020

अपराजिता छंद - आचार्य प्रताप

#अपराजिता_छंद
विधान-(नगण नगण रगण सगण लघु गुरु)
(111  111  212 112   12)
14 वर्ण, 4 चरण,
दो-दो चरण समतुकांत
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चतुर चपल चाल चंचलता चली।
वसन वसित मंजरी मन में फली।
सरस सलिल साथ ले सरिता  कहे
विरह  नयन   गात  पे चपला बहे।
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लहर - लहर शीत- सी  बहती रहे।
सरल  सुगम   कामना  पलती रहे।
सफल सकल  साधना करती  रहे।
कठिन विमल  वेदना    हरती  रहे।
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प्रखर प्रबल तूलिका  चलती रहे।
सकल हृदय  चेतना  भरती रहे।
मधुर-मधुर ज्ञान भी बढ़ता चले।
नमन दमन दंभ को करता चले।
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#आचार्य_प्रताप
#Acharypratap

प्रभात दृश्य में एक गीत जैसा कुछ

प्रभात दृश्य में एक गीत जैसा कुछ
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प्रभात दृश्य देखिए।
विशाल वृक्ष देखिए।।

अनंत  रश्मियाँ   बहें।
सवार अश्व  हो चलें।
प्रताप  देखता  रहे-
प्रकाश पुंज देखिए।

खुली धरा खुला गगन।
प्रणाम कर करें  मनन।।
बढ़े  सदा  स्वमर्ग  पर-
निशान लक्ष्य साधिए।

नम धरा है नम गगन।
तन मगन है मन मगन
प्रसन्नतम् दिखें नयन-
तुहिन  कणों को देखिए।
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#आचार्य_प्रताप
#acharypratap

गुरुवार, 6 फ़रवरी 2020

यह वेला शाम की ..... आचार्य प्रताप

फोटोग्राफी का शौक चढ गया
कुछ शब्दों के लिए साभार दादा आदरणीय डॉ. श्री #ओम_निश्चल जी
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यह वेला शाम की यह वेला शाम की।
दिन भर के
काम से थककर आराम की।
यह वेला शाम की , यह वेला शाम की।
मेघा -मल्हार की
खग-मृग उछाल की।
पतझड़ में झड़ रहें पत्तों के नाम की।।
यह वेला शाम की ....
रंगो-बाहार की
स्वर्णिम फुहार की
वृक्षों के मध्य में रविकर के शान की।
नीलम परिधान के
रक्तिम बलिदान की
साक्षी ये रश्मियाँ रवि के विश्राम की।
यह वेला शाम की ....

तरु के ऊँघान की
दिन के सयान की,
अवस्थाओं के साथ में , रिश्ते पहचान की ।
मिटते उजियार की
बढ़ते निज धाम की।
अपनों के नाम की सपनों के शाम की
यह वेला शाम की .....

शनिवार, 10 मार्च 2018

कुंडलिनी ९९

कुंडलिनी छंद
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शिक्षा मिले गरीब को, करें गरीबी दूर।
बिन शिक्षा के कुछ नहीं, सपने चकनाचूर।
सपने चकनाचूर, न देता कोई भिक्षा।
कह प्रताप अविराम, सदा लो पहले शिक्षा।
________________________प्रताप

मुक्तक

शीर्षक- आनंद की अनुभूति

दुखों में रोकर मिलता है, सुखों में हँसकर मिलता है
क्षुधा-पीड़ित हो प्राणी जो, उसे तो खाकर मिलता है।
जगत में मैंने देखा है, सभी की अपनी विधियां हैं-
पर ! मुझको तो बस आनंद, नव-छंद लिखकर मिलता है।
#प्रताप