शुक्रवार, 6 नवंबर 2020

बघेली गीत- जाड़ लगय बरजोर

गाँउ मा
हमरे कइसन 
बहे ठंड बयारिया भोर।
अब का
कहीं फलाने
जाड़ लगय बड़ी जोर।

चीं-चीं
चूँ-चूँ सुनिके
निकरेन हम घर से बहिरे।
बाहर
आ के या सोच्यन
नाहक हम निकरेन बहिरे।
जब खटिया का हम छोड़्यन तबय करेजा डोल।।


बासी
पानी भरिके
भूसा अउ सानी कीन्हयन।
करत
रह्यन गोरुआरी
कउड़व का लिहन लगाय।
अब का कही हो फलाने हम काँप रह्यन बरजोर।।

मइरे मा
लगा पल्याबा 
अउ हार मा रक्खी धान।
जाड़े मा
फँसिके देख्यन 
ता बिसरिगय सगली शान।।

कउड़ा का निरखी अइसन जइसे चितवय चँद चकोर।।

आचार्य प्रताप

रविवार, 2 अगस्त 2020

प्रेमचंद के अफ़साने से एक संस्मरण

संस्मरण

यह बात उन दिनों की है जब मैं हिंदी विषय से निष्णात् कर रहा था वैसे तो मेरे साथ बहुत से छात्र-छात्राएं अध्ययन कर रहे थे किंतु मुझे भली-भांति याद है कि मेरे साथ अफ़साना नाम की एक मुस्लिम कन्या भी पढ़ा करतीं थीं जैसे कि हम कभी भी महाविद्यालय जाया नहीं करते थे और जब जाया करते तब कक्षा में विषय-शिक्षक या छात्रों से वाद विवाद करते थे , वाद-विवाद इस लिए लिख रहा हूँ कि कभी-कभी अच्छे प्रश्न भी प्रध्यापक महोदय से पूछ लेते थे , किंतु  मेरे प्रश्नों में से ४० प्रतिशत  प्रश्न ऐसे होते जो की विषयागत होकर भी परिहार्य हुआ करते थे और शेष प्रश्न उत्कृष्ट तो नहीं कह सकता किंतु उत्तम कहूँ तो अतिश्योक्ति नहीं होगी और ये जो अनावश्यक प्रश्न होते थे उनके अधिकतर जनक मित्र होते और वो मुझे ही पूछने के लिए कहते और मैं थोड़ा वाचाल हुआ करता था अतः पूछ लिया करता था।

एक दिन प्रेमचंद के साहित्य अर्थात कहानियाँ एवं उपन्यास के प्रध्यापक आए और उन्होंने सभी के नाम और उनके अर्थ एक के बाद एक  पूछने लगे।
सभी ने अपने अपने नाम और उनके नामों के अर्थ बताने लगे तभी उस कन्या ने अपना नाम बताया अफ़साना बताया तभी प्राध्यापक महोदय ने अर्थ पूछा तो उसने कहा नहीं पता तभी मेरे मस्तिष्क में एक गाना याद आया 'अफ़साना बना के भूल जाना'  और  कमाल की बात यह है कि  जब हम अल्पज्ञ होते हैं तब अनुमान बहुत लगाते हैं और मैंने भी अनुमान लगाया कि अफ़साना  का अर्थ होगा 'पागल'  और मैंने शीघ्रतावश बोल दिया पागल !
उसी समय झगड़ा होना आरंभ हो गया और उसके बाद प्राध्यापक  महोदय ने बीच में आकर हमें शांत कराया तब से परीक्षाएँ  समाप्त होने के बाद आज तक हम दोनों में कभी वार्तालाप नहीं हुई ।
और हाँ कक्षा में प्रध्यापक महोदय ने अफ़साना  का अर्थ बताया  'कहानी'।
बस इतनी सी कहानी थी हमारी।
और मैं चाहकर भी अफ़साना से क्षमा नहीं माँग सका ।
आज इस आलेख के माध्यम से  भी उससे क्षमायाचाना  करता हूँ।

आचार्य प्रताप

गुरुवार, 30 जुलाई 2020

आधुनिक जीवनशैली

आधुनिक जीवनशैली

एक समय था गाँव-गाँव में , लोग मनाते थे त्यौहार।
घर-घर बना अखाड़ा होता, घर-घर होते थे सरदार।।

उन्हीं घरों माता-बहनें, उन्हीं में रहता था परिवार।
पड़ी मुसीबत जब घर में तब, पहुँचे यहाँ मोहल्ले चार।।

कच्ची मिट्टी के घर होते ,पक्के होते रिश्तेदार।
समय ने कैसे पलटा खाया, बचा न कोई अपना यार।।

आज परिस्थित जब देखूँ तब, मन आए एक विचार।
कम शिक्षित थे लेकिन पहले, होते पूरे शिष्टाचार।।

रूखी-सूखी खाकर भी था , जीवन उनका सदाबहार।
पढ़े-लिखों में आ जाते क्यों? आनैतिकता के व्योवहार।।

आचार्य प्रताप

शनिवार, 14 मार्च 2020

दुमदार दोहे

आज के दुमदार दोहे
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सोच रहा था आज मैं, लिखकर दूँगा छंद।
बैठे -‌ बैठे  ही  हुआ,  फूलों  का  मकरंद।। 
लिए तुलसी की माला।
हुआ क्यों मैं मतवाला।।०१।।
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माँ ने खत में यो लिखा, रहना तुम तैयार।
कपड़े-जूते ले लिया, हुआ अनोखा प्यार।।
लिखा जो माँ ने खत में।
वहीं  था  मेरे  मन  में।।०२।।
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कहते हैं सब मित्र अब, कर लो तुम भी प्यार।
मित्रो   की  तो  हो  गई ,   शादी    मेरे   यार।।
चढ़ेगा कब तू घोड़ी। 
समय है थोड़ी-थोड़ी।।०३।।
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पाना हो यदि प्यार तो, करो प्रशंसा आज।
महिलाओं का साथ हो, सदा करोगे राज।।
यही है अबला नारी।
हुई ये सब पर भारी।०४।।
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नारी शक्ति की तुम्हें, आज सुनाऊँ बात।
कंधों से कंधा मिला ,पुरुषों को दें मात।।
प्रशंसा कर दूँ सारी ।
यही है अबला नारी।।०५।।
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सच को जब मैं सच कहूँ , मत सुनिएगा आप।
चाकू - छूरी  लें  यहाँ ,  पहुँचे   सभी   #प्रताप।।
सुनो सब मेरे यारों।
यहाँ से कल्टी मारो।।०६।।
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                     #आचार्य_प्रताप

मंगलवार, 10 मार्च 2020

कुंडलियाँ छंद

कुंडलियाँ_छंद
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मित्र परिधि में जुड रहे , भाँति-भाँति  के  लोग।
जुड़कर   भटके   ये  नहीं ,  कैसा  यह  संयोग।
कैसा  यह   संयोग  , कहे  ये  मन  हो    पावन।
बिन  ऋतु  लगे  वसंत ,  लगा जैसे  हो सावन ।
कैसे   बरसे   मेह  ,  टिप्पणी  आये   निधि  में ।
सरस सलिल सम राह ,   पधारें  मित्र परिधि में।
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आचार्य प्रताप

गुरुवार, 27 फ़रवरी 2020

दोहे- असत्य

झूठ/असत्य
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दोहे
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राह-राह गोरस बिके, हाला बैठ बिकाय।
सत्य नापता है गली, झूठ मिठाई खाय।।०१।।
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आज  आचरण  झूठ  का , बना  जगत  आधार।
चलने  से   पहले   करो  ,  मन  में  सदा  विचार।।०२।।
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छलिया छल करता फिरे, दिखे कहीं न सत्य।
सत्य ढूँढता मैं रहा, मिलता रहा असत्य।।०३।।
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आँखों में पट्टी बँधी, करते झूठा जाप।
अब तो आँखे खोल लो, झूठा जगत प्रताप।।०४।।
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नैतिक थे जब आचरण, खूब छले हैं लोग।
जब से वो ढोंगी बनें,मिलते छप्पन भोग।।०५।।
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करें आचरण सत्य का , बनिए सदा महान।
नींव झूठ की हो अगर,बनते नहीं मकान।।०६।।

 आचार्य प्रताप

शुक्रवार, 21 फ़रवरी 2020

नमामि देव शंकरः -आचार्य प्रताप

#नमामि_सर्वेभ्यो।
#तिथिः- २१-०२-२०२०
#शिवरात्रि_पर्वस्य_शुभाशयाः  
#नमामि_देव_शंकरः   -#पञ्चचामर_छदस्य
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नमो    नमो  नमो   नमः  नमामि शंकरः शिवम्।
नमामि   देव   शंकरम्   नमामि पार्वतिः  शिवम्।
पिनाक    त्वम्  दिगम्बरः  भुजंगभूषणाय  त्वम्।
अखण्ड ज्योति दिव्यताम् विराज साज वंदनाम्।

प्रमाद  नाद  नाशयत्य  अनादि   देव  शंकरम्।
शिखस्त  गङ्ग  चंद्रिके   त्रिनेत्र   शूलपाणिनम्।
अनीश त्वम् विनीश त्वम् त्वमेव कालभैरवम्।
मसानवासते    त्वया    प्रकाश्य   वर्ततेत्वयम्।

नरेश्वरः     दिनेश्वरः     त्वमेव    अष्टमूर्तये।
पतीश त्वम् वृषांक त्वम् त्वमेव शुद्धविग्रहे।
व्योमकेश  रुद्र  त्वम्  त्वमेव   पूषदन्त्भिदे।
हिरण्यरेतसे    नमः    नमामि     वीरभद्राये।

अखण्ड   विश्व  पालकः   सुअंतरंग्सनातनम्।
प्रशस्तिसृष्टि   वंदितुम्  विलोक्य ईश मंगलम्।
अपार   शक्ति   नायकः   निशा प्रहार तारकः।
अनंत   विश्व    चेतनः   दिगंत   काल   वंदनः।

त्रिलोचने       शिवाप्रिये       भुजंगराजधारकः।
कलानिधान      बंधुरः     भूत   -   प्रेतनाथकः।
प्रदोष चित्त साध्यहम्  सदा भजाम्यहम् शिवम्।
सदाशिवः नमाम्यहम्  सदा   सुखी  भवाम्यहम्।

प्रताप   एव   वंदिते   कृपा  कटाक्षधोरणी।
विजीश  कामनाशकः प्रचण्ड  धूलिधोरिणी।
नवीन   मेघनिर्झरी   प्रफुल्ल   नीलकंठकः।
सहस्र मुण्ड मालिका कराल भाल पट्टिकः।

विमुक्त   व्याधि   प्राप्यहम् प्रदोष चित्त साध्यहम्।
नमामि   हे!  महेश्वरम्    कृपा   करोतु   शंकरम्।
नमामि   देव   शंकरम्   नमामि  पार्वतिः  शिवम्।
नमो    नमो  नमो   नमः  नमामि शंकरः  शिवम् ।

आचार्य प्रताप

इति आचार्यप्रतापस्य विरचितम् #पञ्चचामर_छदस्य नमामि देव शंकरः स्तुति समाप्तम्

शनिवार, 15 फ़रवरी 2020

दोहा -आचार्य प्रताप

दोहा
रहिमन तुलसी जायसी, वृंदावन व कबीर।
और बिहारी संग में , दोहा सरिता नीर।।
-आचार्य प्रताप