- दोहे
वर दे वीणा धारिणी , चलूँ ज्ञान अनुरूप।।०१।।
पद्मासन को छोड़कर, बसिए वाणी आप।
सम्यक वर दो ज्ञान का , हर लो सब संताप।।०३।।
सम्यक वर दो ज्ञान का , हर लो सब संताप।।०३।।
तीन लोक विख्यात है , वाणी पर अधिकार।
शोभित वीणा हाथ में , दे दो सुमति अपार।।०४।।
शोभित वीणा हाथ में , दे दो सुमति अपार।।०४।।
हंसवाहिनी ज्ञान देंं , भर दो
सुमति अपार।
करूँ जगत हित काम कुछ, वाणी आज सवार।।०५।।
करूँ जगत हित काम कुछ, वाणी आज सवार।।०५।।
मातु शारदे को करो , पहले आप प्रणाम।
गीत-ग़ज़ल अरु छंद का ,शुरू कीजिये काम।।०६।।
-आचार्य प्रताप
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