गाँउ मा
हमरे कइसन
बहे ठंड बयारिया भोर।
अब का
कहीं फलाने
जाड़ लगय बड़ी जोर।
चीं-चीं
चूँ-चूँ सुनिके
निकरेन हम घर से बहिरे।
बाहर
आ के या सोच्यन
नाहक हम निकरेन बहिरे।
जब खटिया का हम छोड़्यन तबय करेजा डोल।।
बासी
पानी भरिके
भूसा अउ सानी कीन्हयन।
करत
रह्यन गोरुआरी
कउड़व का लिहन लगाय।
अब का कही हो फलाने हम काँप रह्यन बरजोर।।
मइरे मा
लगा पल्याबा
अउ हार मा रक्खी धान।
जाड़े मा
फँसिके देख्यन
ता बिसरिगय सगली शान।।
कउड़ा का निरखी अइसन जइसे चितवय चँद चकोर।।
आचार्य प्रताप