कुंडलियाँ_छंद
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मित्र परिधि में जुड रहे , भाँति-भाँति के लोग।
जुड़कर भटके ये नहीं , कैसा यह संयोग।
कैसा यह संयोग , कहे ये मन हो पावन।
बिन ऋतु लगे वसंत , लगा जैसे हो सावन ।
कैसे बरसे मेह , टिप्पणी आये निधि में ।
सरस सलिल सम राह , पधारें मित्र परिधि में।
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आचार्य प्रताप
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