यह मेरी प्रथम पुस्तक का नाम है अतः मैने सोचा कि इसके माध्यम से मैं अपने पाठकों तक अपनी रचनाएँ पहुँचाऊँ।
शुक्रवार, 31 जुलाई 2020
गुरुवार, 30 जुलाई 2020
आधुनिक जीवनशैली
आधुनिक जीवनशैली
एक समय था गाँव-गाँव में , लोग मनाते थे त्यौहार।
घर-घर बना अखाड़ा होता, घर-घर होते थे सरदार।।
उन्हीं घरों माता-बहनें, उन्हीं में रहता था परिवार।
पड़ी मुसीबत जब घर में तब, पहुँचे यहाँ मोहल्ले चार।।
कच्ची मिट्टी के घर होते ,पक्के होते रिश्तेदार।
समय ने कैसे पलटा खाया, बचा न कोई अपना यार।।
आज परिस्थित जब देखूँ तब, मन आए एक विचार।
कम शिक्षित थे लेकिन पहले, होते पूरे शिष्टाचार।।
रूखी-सूखी खाकर भी था , जीवन उनका सदाबहार।
पढ़े-लिखों में आ जाते क्यों? आनैतिकता के व्योवहार।।
आचार्य प्रताप
शनिवार, 14 मार्च 2020
दुमदार दोहे
आज के दुमदार दोहे
=============
सोच रहा था आज मैं, लिखकर दूँगा छंद।
बैठे - बैठे ही हुआ, फूलों का मकरंद।।
लिए तुलसी की माला।
हुआ क्यों मैं मतवाला।।०१।।
=====================
माँ ने खत में यो लिखा, रहना तुम तैयार।
कपड़े-जूते ले लिया, हुआ अनोखा प्यार।।
लिखा जो माँ ने खत में।
वहीं था मेरे मन में।।०२।।
=====================
कहते हैं सब मित्र अब, कर लो तुम भी प्यार।
मित्रो की तो हो गई , शादी मेरे यार।।
चढ़ेगा कब तू घोड़ी।
समय है थोड़ी-थोड़ी।।०३।।
===================
पाना हो यदि प्यार तो, करो प्रशंसा आज।
महिलाओं का साथ हो, सदा करोगे राज।।
यही है अबला नारी।
हुई ये सब पर भारी।०४।।
======================
नारी शक्ति की तुम्हें, आज सुनाऊँ बात।
कंधों से कंधा मिला ,पुरुषों को दें मात।।
प्रशंसा कर दूँ सारी ।
यही है अबला नारी।।०५।।
=======================
सच को जब मैं सच कहूँ , मत सुनिएगा आप।
चाकू - छूरी लें यहाँ , पहुँचे सभी #प्रताप।।
सुनो सब मेरे यारों।
यहाँ से कल्टी मारो।।०६।।
=======================
#आचार्य_प्रताप
मंगलवार, 10 मार्च 2020
कुंडलियाँ छंद
कुंडलियाँ_छंद
------------------------
मित्र परिधि में जुड रहे , भाँति-भाँति के लोग।
जुड़कर भटके ये नहीं , कैसा यह संयोग।
कैसा यह संयोग , कहे ये मन हो पावन।
बिन ऋतु लगे वसंत , लगा जैसे हो सावन ।
कैसे बरसे मेह , टिप्पणी आये निधि में ।
सरस सलिल सम राह , पधारें मित्र परिधि में।
--------
आचार्य प्रताप
गुरुवार, 27 फ़रवरी 2020
दोहे- असत्य
झूठ/असत्य
----------------
दोहे
*****
राह-राह गोरस बिके, हाला बैठ बिकाय।
सत्य नापता है गली, झूठ मिठाई खाय।।०१।।
------
आज आचरण झूठ का , बना जगत आधार।
चलने से पहले करो , मन में सदा विचार।।०२।।
------
छलिया छल करता फिरे, दिखे कहीं न सत्य।
सत्य ढूँढता मैं रहा, मिलता रहा असत्य।।०३।।
-----
आँखों में पट्टी बँधी, करते झूठा जाप।
अब तो आँखे खोल लो, झूठा जगत प्रताप।।०४।।
-----
नैतिक थे जब आचरण, खूब छले हैं लोग।
जब से वो ढोंगी बनें,मिलते छप्पन भोग।।०५।।
-----
करें आचरण सत्य का , बनिए सदा महान।
नींव झूठ की हो अगर,बनते नहीं मकान।।०६।।
आचार्य प्रताप
शुक्रवार, 21 फ़रवरी 2020
नमामि देव शंकरः -आचार्य प्रताप
#नमामि_सर्वेभ्यो।
#तिथिः- २१-०२-२०२०
#शिवरात्रि_पर्वस्य_शुभाशयाः
#नमामि_देव_शंकरः -#पञ्चचामर_छदस्य
-------------------------------------------------------
नमो नमो नमो नमः नमामि शंकरः शिवम्।
नमामि देव शंकरम् नमामि पार्वतिः शिवम्।
पिनाक त्वम् दिगम्बरः भुजंगभूषणाय त्वम्।
अखण्ड ज्योति दिव्यताम् विराज साज वंदनाम्।
प्रमाद नाद नाशयत्य अनादि देव शंकरम्।
शिखस्त गङ्ग चंद्रिके त्रिनेत्र शूलपाणिनम्।
अनीश त्वम् विनीश त्वम् त्वमेव कालभैरवम्।
मसानवासते त्वया प्रकाश्य वर्ततेत्वयम्।
नरेश्वरः दिनेश्वरः त्वमेव अष्टमूर्तये।
पतीश त्वम् वृषांक त्वम् त्वमेव शुद्धविग्रहे।
व्योमकेश रुद्र त्वम् त्वमेव पूषदन्त्भिदे।
हिरण्यरेतसे नमः नमामि वीरभद्राये।
अखण्ड विश्व पालकः सुअंतरंग्सनातनम्।
प्रशस्तिसृष्टि वंदितुम् विलोक्य ईश मंगलम्।
अपार शक्ति नायकः निशा प्रहार तारकः।
अनंत विश्व चेतनः दिगंत काल वंदनः।
त्रिलोचने शिवाप्रिये भुजंगराजधारकः।
कलानिधान बंधुरः भूत - प्रेतनाथकः।
प्रदोष चित्त साध्यहम् सदा भजाम्यहम् शिवम्।
सदाशिवः नमाम्यहम् सदा सुखी भवाम्यहम्।
प्रताप एव वंदिते कृपा कटाक्षधोरणी।
विजीश कामनाशकः प्रचण्ड धूलिधोरिणी।
नवीन मेघनिर्झरी प्रफुल्ल नीलकंठकः।
सहस्र मुण्ड मालिका कराल भाल पट्टिकः।
विमुक्त व्याधि प्राप्यहम् प्रदोष चित्त साध्यहम्।
नमामि हे! महेश्वरम् कृपा करोतु शंकरम्।
नमामि देव शंकरम् नमामि पार्वतिः शिवम्।
नमो नमो नमो नमः नमामि शंकरः शिवम् ।
आचार्य प्रताप
इति आचार्यप्रतापस्य विरचितम् #पञ्चचामर_छदस्य नमामि देव शंकरः स्तुति समाप्तम्
शनिवार, 15 फ़रवरी 2020
गुलाबी सर्दी में एक विरह गीत
गुलाबी सर्दी में एक विरह गीत
----------------------------------------------------------
दृगजलों
को चक्षुओं
से मत बहाओ-
शीघ्र ही मैं लौट आऊँगा दोबारा।
कार्य
अपना पथ
प्रगति पर, है प्रिये सुन।
प्रेयसी
दो अनुमति
अब, शान से तुम-
कंठ से क्रंदन विरह का मत सुनाओ।
शीघ्र ही मैं लौट आऊँगा दोबारा।
एक
क्षत्रिय जा
रहा रणभूमि जैसे।
अदम्य
साहस शौर्य
भर कर दो तिलक तुम।
केश उलझे तुम दिखा कर मत रिझाओ-
शीघ्र ही मैं लौट आऊँगा दोबारा।
सब
जानकी
जलतीं विरह की अग्नि में हैं।
हर
यामिनी
पश्चात आतीं रश्मियाँ हैं।
यूँ तीर नयनों के हृदय पर मत चलाओ।
शीघ्र ही मैं लौट आऊँगा दोबारा।
आचार्य प्रताप
गुरुवार, 13 फ़रवरी 2020
छंदों के प्रति नेह
कई मुक्त सृजनकर्ताओं को पढ़ने के बाद एक कुंडलियाँ
-----------------------------------------------------------------------
नहीं बरसाता है कहीं , छंदों पर अब नेह।
कविता की ये देह को , कुचल रहें हैं मेह।
कुचल रहें हैं मेह , आज छंदों का जीवन।
छंद देव के हेतु , समर्पित मेरा तन मन।
कविताओं में छंद , बहाते सदा सरसता।
छंद बिना अब नेह , कहूँ मैं नहीं बरसता।
आज का दुःख
दो पंक्तियाँ
----------------
क्या कहूँ कैसे कहूँ मनमीत मेरे
और कितने दुःख हृदय में मैं छुपाऊँ।
सोचता हूँ राज़ सारे खोल कर अब
आज क्रंदन सुर सभी को मैं सुनाऊँ।।
सदस्यता लें
संदेश (Atom)