कुंडलिनी
*******
१
===========================
आया था जब जगत में, विलख रहा था खूब।
धीरे-धीरे फिर दिखी, मनमोहक सी दूब।
मनमोहक सी दूब, दिखी हरियाली माया।
लगता ऐसा आज, पुनः है सावन आया।।०१
०२
===========================
आया था जब गाँव से , शहर हैदराबाद।
भाषा में था भेद तब , लगा हुआ बर्बाद।
लगा हुआ बर्बाद,सवारा अपनी काया।
भूत,भविष्य, वर्तमान, सब कुछ यहीं पर आया।
३.
===========================
आया फाल्गुन मास अब, छाए रंग हजार।
रंग-बिरंगी तितलियाँ, उड़ती पंख पसार।
उड़ती पंख पसार, मिट रही उनकी काया।
टूटा जो था पंख , नहीं फिर वापस आया।
४.
===========================
कुंडलिनी का जागरण, मात्राओं का नाप।
दिन रात अभ्यास करो, लिखते रहो प्रताप।।
लिखते रहो प्रताप , सदा तुम भ्राता -भगिनी।
लय का रखना ध्यान,रचो तुम भी कुंडलिनी।।
५.
=============================
छाया दिखती है नहीं, नष्ट हुए हैं पेड़।
जीवन खतरे में दिखे, जीवन हुआ अधेड़।
जीवन हुआ अधेड़, प्रदूषण की ही काया।
कह प्रताप अविराम, कहाँ से मिलती छाया।
================================
राहुल प्रताप सिंह "प्रताप"
यह मेरी प्रथम पुस्तक का नाम है अतः मैने सोचा कि इसके माध्यम से मैं अपने पाठकों तक अपनी रचनाएँ पहुँचाऊँ।
बुधवार, 21 फ़रवरी 2018
कुंडलिनी छंद
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
आपको अधिक जानकारी चाहिए तो टिप्पणी करें